१) मनुष्य और मनुष्य के बीच जाती, वर्ण, वर्ग, आश्रम, कुल, गोत्र, उच्च-नीच, स्पृश्य-अस्पृश्य आदि के भेद-भाव नष्ट कर सारे संसार में मानव समता स्थापित होनी चाहिए ! यह मानव समता ही विश्व-बंधुत्व, विश्वप्रेम और विश्वशांति का आधार हैं !
२) जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में स्त्री-पुरुषों को सामान अधिकार होने चाहिए !
३) प्रत्येक व्यक्ति 'स्वकायक ' द्वारा अपना और अपने परिवार का उदरपोषण करे !
४) सभी कायक समान सम्मान दृष्टि से देखे जाएँ !
५) परान्नसेवी शोषणवृत्ति और भिक्षाव्रत्ति का जनजीवन से पुर्णतः निष्कासन हो !
६) जाती-सूतक, जनन-सूतक, प्रेत-सूतक, रज-सूतक और उछिष्ठ-सूतक न मने जाएँ !
७) बहुदेवोपासना, भुतप्रेतों की पूजा और धार्मिक अंधविश्वास एवं पाखंड का पुर्णतः निर्मूलन किया जाएँ !
८) अविचार, अनाचार, दुर्भावना तथा तामसिक वृत्तियों को त्याग मानवसमाज सदाचार, सत्कर्म और सदधर्म का आचरण करे !
९) जनजीवन में मांसाहार, मद्यपान, जुआ खेलनेकी आदत, फसवेगिरी, विश्वासघात, क्रूरता पूर्ण कुकर्म, छल, कपट, इर्ष्या, द्वेष, वेश्यावृत्ति, हिंसाचार, एवम् अनीतिपूर्ण व्यवहार समाप्त हो !
१०) प्रत्तेक व्यक्ति अष्टमद, षडरिपु और इंद्रियजन्य विकारों से अलिप्त रहे !
११) भौतिक सुखों के पीछे भागने की अपेक्षा दासोह और लोकसेवा के लिए अपने जीवन का सदुपयोग करे !
१२) शोषण करना, शोषित होना अथवा शोषण करने में प्रत्यक्ष्य अथवा परोक्ष रूप से सहयोग देना - तीनों समान रूप से अपराध हैं !
१३) देहदेवालय में, हृदय के सिंहासन पर इष्टलिंग की प्रतिष्ठा करना सदभक्ति हैं !
१४) बसव-तत्व, लिंगायत-धर्म, शिव-आचार, शरण-संस्कृति, एवम् वचन-साहित्यानुरूप आचरण तथा इष्टलिंग, अष्ठावरण, पंचाचार एंव षड्स्थल आचरण के अनुभाव से हर कोयी शरण पद और लिंगांग-सामरस्य प्राप्त कर सकते हैं !
१५) प्रत्तेक व्यक्ति को सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एंव लोककल्याण के क्षेत्र में स्वतंत्र-चिंतन और स्वतंत्र - अभिव्यक्ति का अधिकार होना चाहिए !
१६) वैराग्य के नाम पर समाज से परागंमुख हो गिरी खंडरों में तपश्चर्या करना 'पलायन' हैं | गृहस्थ-जीवन जीते हुए शिवाचार का पालन करना पुरुषार्थ हैं, लिंगायत धर्म हैं !
१७) तर्क, प्रमाण, और अनुभाव द्वारा मुक्त-चिंतन से प्रत्येक व्यक्ति को स्वकल्याण का राजमार्ग प्राप्त हो सकता हैं !
१८) स्वकल्याण के बिना लोककल्याण नहीं हो सकता, अतः व्यक्तित्व के वैश्विक विकास के बिना, वैश्विक समानता संभव नहीं !
यही स्वाभिमानी लिंगायत धर्म संहिता हैं.!
साभार - लिंगायत सेवा संघ.
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